भारत में प्रागैतिहासिक संस्कृतियां

भारत में प्रागैतिहासिक संस्कृतियां

  ➪ प्रागैतिहासिक काल के स्रोत
 ➪ भारतीय प्रागैतिहासिक काल की अवधि
 ➪ पाषाण काल
 ➪ पुरापाषाण काल (500,000 - 10,000 ईसा पूर्व) 
 ➪ मध्यपाषाण काल (10,000 ईसा पूर्व - 6000 ईसा )
 ➪ नवपाषाण काल (6000 ईसा पूर्व - 1000 ईसा पूर्व) 
 ➪ ताम्रपाषाण काल (4000- 1500 ई. पू.)
 ➪ लौह युग (1500) - 200 ई. पू.




प्रागैतिहासिक काल के स्रोत :- 

(Prehistoric sources)

विद्वानों ने इतिहास को उसके साक्ष्यों के आधार पर मुख्य रूप से तीन हिस्सों में विभाजित किया है प्रागैतिहासिक काल आद्य ऐतिहासिक काल और ऐतिहासिक काल |

प्रागौतिहास शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में विल्सन ने किया था। प्रागौतिहासिक काल- ऐसा काल जिसका कोई लिखित साक्ष्य नहीं हैं। इसके बारे में हमें पुरातात्विक स्रोतों से पता चलता है, इस काल का कोई लिखित स्रोत इसलिए नहीं है क्योंकि इस काल के मानव, आदि मानव थे, जो की लिखना- पढना नहीं जानते थे। इसे पाषाण काल कहा जाता हैं।

भारतीय प्रागैतिहासिक काल की अवधि :-

(Period of Indian prehistoric period)

पुरापाषाण काल:- 500,000 ईसा पूर्व 10,000 ईसा पूर्व

उत्तर पाषाण काल :- 10,000 ईसा पूर्व - 6000 ईसा पूर्व

नवपाषाण काल :- 6000 ईसा पूर्व - 1000 ईसा पूर्व

ताम्रपाषाण काल :- 3000 ईसा पूर्व - 500 ईसा पूर्व

लौह युग :- 1500 ईसा पूर्व - २०० ईसा पूर्व

पाषाण काल :- 

(Stone Age)    

 पाषाण युग प्रागैतिहासिक काल अर्थात् लिपि के विकास से पहले का काल, इसलिए इस काल की जानकारी का मुख्य स्रोत पुरातात्विक उत्खन्न हैं। रॉबर्ट कुछ फटे वह पुरातत्वविद थे जिन्होंने भारत में पहला पुरापाषाणकालीन उपकरण चल्यावरण हैडस्क्स की खोज की थी। उस काल मे मानव का जीवन पत्थरों पर अत्यधिक आश्रित था। पत्थर के औजारों के प्रकार एवं प्रौद्योगिकी तथा निर्वाह आधार के आधार पर भारतीय पाषाण युग को मुख्यता तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है।

• पुरापाषाण काल

• उत्तर पाषाण काल

• नव पाषाण काल

पुरापाषाण काल (500,000 - 10,000 ईसा पूर्व) :-

(Paleolithic period (500,000 - 10,000 BCE) 

पुरापाषाण शब्द ग्रीक शब्द पैलियों से लिया गया है जिसका अर्थ है पुराना और पाषाणिक जिसका अर्थ हैं पत्थर। इसलिए पुरापाषाण काल शब्द का तात्पर्य पुराने युग से हैं। भारत में पुरापाषाण संस्कृति का विकास हि हिम युग में हुआ था और भारत पुरापाषाण कालीन पुरुषों को 'ताजाइए' में पुरुष भी कहा जाता था क्योंकि पत्थर के उपकरण क्वार्टजाइट नामक कठोर चट्टान से बने होते थे। पुरापाषाण युग को लोगों हाथ उपयोग किए जाने वाले द्वारा के औजाधों की प्रकृति और जलवायु परिवर्तन पत्थर के औजारों की प्रवृति के अनुसार तीन चरणों में विभाजित किया गया है।                      

मध्यपाषाण काल (10,000 ईसा पूर्व - 6000 ईसा पूर्व ) :- 

(Mesolithic period (10,000 BC – 6000 BC) 

मेसोलिथिक शब्द दो ग्रीक शब्दों में से और लिखित से बना है ग्रीक में मैसूर शब्द मध्य और लिखित शब्दों का अर्थ पत्थर है।इस युग में तापमान में ही हुई, जलवायु गर्म हो गई जिसके परिणामस्वरूप बर्फ पिघली और वनस्पतियों और जीवों में भी बदलाव आया। इस युग के लोग शुरू में विकार मछली पकड़ने और भोजन इकठ्ठा करने पर निर्भर थे। लेकिन बाद में उन्होंने जानवरों को पालतू बनाया और पौधों की खेती की, जिससे कृषि का मार्ग प्रशस्त हुआ।

नवपाषाण काल (6000 ईसा पूर्व - 1000 ईसा पूर्व) :-

(Neolithic Period (6000 BC - 1000 BC)

नवपाषाण शब्द ग्रीक शब्द नियों से लिया गया है जिसका अर्थ है नया और लिथिक का अर्थ पत्थर। इसे नवपाषाण क्रांति भी कहा जाता है क्योंकि इसने मनुष्य के सामाजिक और आर्थिक जीवन में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन जाए। नवपाषाण युग में मनुष्य खाद्य संग्रहकर्ता से खाद्य उत्पादक बन गया । नवपाषाणकालीन लोग पहाड़ी से अधिक दूर नहीं रहते थे। वे मुख्य रूप से पहाड़ी नदी घाटियों चट्टानी आश्रयों और पहाड़ियों की ढलानों पर निवास करते थे, क्योंकि वे पूरी तरह से पत्थर से बने हथियारों और उपकरणों पर निर्भर थे।

ताम्रपाषाण काल (4000- 1500 ई. पू.) :-

(Chalcolithic period (4000- 1500 BC)

ताम्रपाषाण काल में पत्थर के औजारों के साथ-साथ धातु के उपयोग का भी उदय हुआ उपयोग की जाने वाली पहली धातु तांबा थी। ताम्रपाषाण काल मुख्य रूप से पूर्व - हड़प्पा चरण पर लागू होता है लेकिन देश के कई हिस्सों में, यह कास्य हड़प्पा संस्कृति के अंत के बाद दिखाई देता है।

लौह युग (1500) - 200 ई. पू.) :-

(Iron Age (1500 - 200 BC) 

लौह युग उस काल को कहते है जिसमें मनुष्य ने लोहे का इस्तेमाल किया। इस युग की विशेषता यह है कि इसमे मनुष्य ने विभिन्न भाषाओं की वर्णमालाओं का विकास किया । कृषि, धार्मिक विश्वासों और कलाशैलियों में भी इस युग में भारी परिवर्तन हुए। कर्नाटक के धारवार जिले से ई.पू. 1000 के लोहे के अवशेष मिले हैं। लगभग इसी समय गांधार (अब पाकिस्तान में) क्षेत्र में लोहे का उपयोग होने लगा । मृतकों के साथ शवाधानों गाढ़े गए लौह उपकरण भारी मात्रा में प्राप्त हुए हैं। ऐसे औजार बलोचिस्तान में मिले हैं।




Post a Comment

Previous Post Next Post